सोमवार साप्ताहिक लगने वाले बाजार की हालत बत से बत्तर✍️ ये है आज के बाजार की जमीनी हकीकत देख कर होजाएंगे आप दंग…

पत्थलगांव✍️ जितेन्द्र गुप्ता

सोमवार साप्ताहिक लगने वाले बाजार की हालत बत से बत्तर

?जगह ढूंढ़ कर चलना है आपको पर कितना बचा पाएंगे खुद को

सोमवार को लगने वाला सप्ताहिक बाजार की हालत बत से बत्तर बनी हुई है। जहाँ पूरी तरह कीचड़ से सने जगहों से लोगो को जैसे तैसे सब्जी ख़िरदने जाना पड़ रहा है। हर तरफ पूरी तरह कीचड़ से सरोबार पूरा बाजार परिसर भरा पड़ा है। जहां से गुजर पाना हर ब्यक्ति के लाइट आसान नही खास कर महिलाओं के लुई सबसे विकट स्थिति पर स्थानिय प्रशासन पूरी तरह चिर निद्रा में लीन जिससे स्थिति पूरी तरह खराब बनी हुई है। जो भी बाजार आता है। जैसे तैसे सब्जी एवं अन्य जरूरी सामानों की खरीदी कर अपने कपड़े को गन्दे कर घर पहुच रहे है। आप सोच भी नही सकते कि आज भी जब हम 21 सदी की और बढ़ चले है। तब जशपुर रोड में लगने वाले साप्ताहिक बाजार का हाल ये भी हो सकता है।


जब सोमवार को बाजार पहुचते है। लोग तो उन्हें हर तरफ बस कीचड़ और बाजार परिसर में भरे हुए पानी से होजर ही सामनो की खरीदी बिक्री करनी पड़ती है। बाजार पहुचने के सभी रास्तो मेहर तरफ बस कीचड़ ही कीचड़ पर मजाल है। कि कभी स्थानिय प्रशासन एक बार भी सोमवार को लगने वाले बाजार परिसर में पहुँच कर स्थिति को बेहतर करने की कोसीश करें
यही कारण है।कि आम जनो का प्रशासन से विश्वास उठता देखा जाने लगा है।

महिलाए जैसे तैसे किनारे से होकर बाजार पहुचने की जद्दोजहद से गुजर रहे है। और इस भयावह स्थिति से दो चार हो रहे है।
हमने कुछ हफ्ते पहले ही पत्थलगांव सप्ताहिक बाजार में हर तरफ गन्दगी और कीचड़ की खबर लिख कर स्थिति को बेहतर बनाने जानकारी दी थी पर नगरपंचायत पत्थलगांव ने कुछ ट्रेक्टर मुरुम डाल कर अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो गए लेकिन सोमवार बाजार की स्थिति आज तक जस की तस बनी हुई है। इससे आप समझ सकते हैं कि पत्थलगांव के अधिकारियों इस तरीके से स्थानीय समस्याओं पर कार्य करते हैं। आप देखेंगे तो आप दंग रह जाएंगे क्योंकि चलने के लिए कहीं पर जगह नहीं है। पर मजबूरी ऐसी कि लोगों को सब्जी खरीदने के लिए हर हाल पर सोमवार बाजार के दिन बाजार पहुंचना पड़ता है।पर वहां पहुंचने पर पता चलता है। कि चलने के लिए कहीं जगह नहीं है। बड़े-बड़े दावे करने वाले अधिकारी जमीनी हकीकत से रूबरू होना नहीं चाहते जिसका खामियाजा आमजन को भुगतना पड़ता है।