अंबिकापुर सीट से टीएस सिंहदेव के खिलाफ भाजपा ने राजेश अग्रवाल को मैदान में उतारा, भाजपा को इस सीट से लगातार 3 बार मिली है हार….

 

 

* अंबिकापुर: पिछले 3 विधानसभा चुनाव में टीएस सिंहदेव के खिलाफ भाजपा की ओर से अनुराग सिंहदेव लड़े थे चुनाव, राजेश अग्रवाल रह चुके हैं लखनपुर नगर पंचायत अध्यक्ष.

शमरोज खान सूरजपुर
अंबिकापुर. विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा ने अपनी अंतिम लिस्ट भी जारी कर दी है। इस लिस्ट में बाकी बचे 4 विधानसभा सीटों पर प्रत्याशियों की घोषणा की गई है। इसमें सबसे हाईप्रोफाइल सीट अंबिकापुर की है। अंबिकापुर सीट से भाजपा ने राजेश अग्रवाल को कांग्रेस के टीएस सिंहदेव के खिलाफ मैदान में उतारा है। पिछले 3 विधानसभा चुनावों में अंबिकापुर सीट से टीएस सिंहदेव ही जीतते आए हैं।


भाजपा ने अंबिकापुर सहित बाकी बची 4 सीटों पर अपने प्रत्याशियों की घोषणा कर दी है। अंबिकापुर सीट से जहां पूर्व नगर पंचायत अध्यक्ष लखनपुर राजेश अग्रवाल को टिकट दिया गया है, वहीं बेलतरा से सुशांत शुक्ला, कसडोल सीट से धनीराम धीवर व बेमेतरा से दीपेश साहू को प्रत्याशी बनाया गया है।
दोनों ही प्रमुख राजनीतिक दलों द्वारा 90-90 सीटों पर अपने प्रत्याशियों की घोषणा कर दिए जाने से तस्वीर साफ हो गई है। हाईप्रोफाइल सीट मानी जा रही अंबिकापुर सीट से टीएस सिंहदेव के खिलाफ भाजपा के राजेश अग्रवाल मैदान में होंगे।
राजेश अग्रवाल की पकड़ भी लखनपुर व उदयपुर क्षेत्र में मजबूत बताई जा रही है। इन क्षेत्रों से ही टीएस सिंहदेव अब तक बढ़त बनाते आए हैं।

* चिंतामणि महाराज भी जता चुके थे इच्छा –  कांग्रेस ने सामरी विधायक चिंतामणि महाराज को इस बार टिकट नहीं दिया है। ऐसे में भाजपा के दिग्गज नेताओं द्वारा 4 दिन पूर्व उन्हें भाजपा की ओर से लोकसभा चुनाव लडऩे निमंत्रण दिया गया था।

इस दौरान चिंतामणि महाराज ने अंबिकापुर सीट से टीएस सिंहदेव के खिलाफ चुनाव लडऩे की इच्छा जताई थी। हालांकि राजेश अग्रवाल को टिकट मिल जाने से यह तस्वीर भी साफ हो चुकी है।

* भाजपा को लगातार 3 बार मिली है हार – भाजपा को अंबिकापुर सीट से वर्ष 2003 को छोडक़र वर्ष 2008, 2013 व 2018 में हार का सामना करना पड़ा है। तीनों ही चुनावों में भाजपा की ओर से टीएस सिंहदेव के खिलाफ अनुराग सिंहदेव मैदान में थे।
हालांकि वर्ष 2008 में अनुराग सिंहदेव ने टीएस सिंहदेव को कड़ी टक्कर दी थी। इस दौरान टीएस मात्र 948 वोट से ही जीत दर्ज कर पाए थे। वर्ष 2013 में जीत का अंतर 20 हजार वोट को पार कर गया, वहीं 2018 में अंतर करीब 40 हजार रहा।