कछार शिव मंदिर में भक्तों की बढ़ती भीड़ माता की रसोई का प्रसाद लेने भक्त करते है इंतजार….

पत्थलगांव ✍️जितेन्द्र गुप्ता

कछार शिव मंदिर में भक्तों की बढ़ती भीड़ माता की रसोई का प्रसाद लेने भक्त करते है इंतजार

जब से नवरात्र पर्व की शुरुआत हुई है उसी दिन से श्रद्धालुओं की लगातार व्रद्धि से कछार शिव मंदिर परिसर खचाखच भरा दिख रहा है रोजाना रात्री आरती में महिलाएं पुरूष और बच्चे माता रानी के दरबार मे भक्तिमय आरती में तल्लीन रहते है 1 घण्टे के आरती के पश्चात माता की रसोई का प्रसाद सभी भक्तों को दीया जाता है जिसके लिए शिव मंदिर समिति के सदस्य सुबह से ही पूरी तैयारी करते रहते है ।

मंदिर समिति के सदस्य मंदिर में आये सभी भक्तों को माता की रसोई का प्रसाद परोस कर खिलाते है। मंदिर समिति के सदस्य ऋषि बेहरा, ने बताया कि रविवार के दिन कछार शिव मंदिर में लगभग 1200 से 1400 लोग मौजूद थे

कछार शिव मंदिर में ज्योति कलश प्रज्वलित की जाती है जहां से माता रानी से अपने घर परिवार की सुख शांति और सम्रद्धि के लिए आशीर्वाद मांगते है।

आचार्य चन्द्रेश्वर मिश्रा ने बताया कलावे( रक्षा सूत्र) का वैज्ञानिक और धार्मिक महत्व…
कलावा तीन धागों से मिलकर बना हुआ होता है। आमतौर पर यह सूत का बना हुआ होता है। इसमे लाल पीले और हरे या सफेद रंग के धागे होते हैं। यह तीन धागे त्रिशक्तियों (ब्रह्मा, विष्णु और महेश) के प्रतीक माने जाते हैं। हिन्दू धर्म में इसको रक्षा के लिए धारण किया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि जो कोई भी विधि विधान से रक्षा सूत्र या कलावा धारण करता है उसकी हर प्रकार के अनिष्टों से रक्षा होती है।

कलावे को मौली भी कहा जाता है।

– मौली’ का शाब्दिक अर्थ है ‘सबसे ऊपर’
– मौली का तात्पर्य सिर से भी है
– मौली को कलाई में बांधने के कारण इसे कलावा भी कहते हैं
– इसका वैदिक नाम उप मणिबंध भी है
– शंकर भगवान के सिर पर चन्द्रमा विराजमान हैं, इसीलिए उन्हें चंद्रमौली भी कहा जाता है
– मौली कच्चे धागे से बनाई जाती है। इसमें मूलत: 3 रंग के धागे होते हैं; लाल, पीला और हरा
– लेकिन कभी कभी ये 5 धागों की भी बनती है, जिसमें नीला और सफेद भी होता है
– 3 और 5 का मतलब कभी त्रिदेव के नाम की, तो कभी पंचदेव।
– कलावा बांधने से त्रिदेव, ब्रह्मा, विष्णु व महेश तथा तीनों देवियों लक्ष्मी, पार्वती व सरस्वती की कृपा प्राप्त होती है
– ब्रह्मा की कृपा से कीर्ति विष्णु की अनुकंपा से रक्षा बल मिलता है
– शिव दुर्गुणों का विनाश करते हैं।

 

कलावा दूर करेगा बीमारियां…

स्वास्थ्य के अनुसार रक्षा सूत्र बांधने से कई बीमारियां दूर होती है। जिसमें कफ, पित्त आदि शामिल है। शरीर की संरचना का प्रमुख नियंत्रण हाथ की कलाई में होता है अतः यहां रक्षा सूत्र बांधने से व्यक्ति स्वस्थ रहता है। ऐसी भी मान्यता है कि इसे बांधने से बीमारी अधिक नहीं बढती है। ब्लड प्रेशर, हार्ट एटेक, डायबीटिज और लकवा जैसे रोगों से बचाव के लिये मौली बांधना हितकर बताया गया है।

मौली यानी रक्षा सूत्र शत प्रतिशत कच्चे धागे, सूत, की ही होनी चाहिए। मौली बांधने की प्रथा तब से चली आ रही है जब दानवीर राजा बलि के लिए वामन भगवान ने उनकी कलाई पर रक्षा सूत्र बांधा था।

कलाई पर इसको बांधने से जीवन में आने वाले संकट से यह आपकी रक्षा करता है। वेदों में भी इसके बारे में बताया गया है कि जब वृत्रासुर से युद्ध के लिए इंद्र जा रहे थे तब इंद्राणी ने इंद्र की रक्षा के लिए उनकी दाहिनी भुजा पर रक्षासूत्र बांधा था। जिसके बाद वृत्रासुर को मारकर इंद्र विजयी बने और तभी से यह परंपरा चलने लगी। रक्षासूत्र का मंत्र है- *येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल:। तेन त्वामनुबध्नामि रक्षे मा चल मा चल।।* मंत्र का अर्थ- दानवों के महाबली राजा बलि जिससे बांधे गए थे, उसी से तुम्हें बांधता हूं।
** शास्त्रों के अनुसार पुरुषों एवं अविवाहित कन्याओं को दाएं हाथ में कलावा बांधना चाहिए। विवाहित स्त्रियों के लिए बाएं हाथ में कलावा बांधने का नियम है। कलावा बंधवाते समय जिस हाथ में कलावा बंधवा रहे हों, उसकी मुट्ठी बंधी होनी चाहिए और दूसरा हाथ सिर पर होना चाहिए। इस तरह बांधें कलावा।

धार्मिक शास्त्रों में बताया गया है कि कलावा बांधते समय एक हाथ में दक्षिणा रखना बेहद जरूरी है. वहीं अपना दूसरा हाथ सिर पर रखना चाहिए. अब हाथ में 3, 5 या 7 बार कलावा लपेटना चाहिए. हाथ में रखी दक्षिणा जिसने कलावा बांधा उसे भेंट के रूप में दे देना चाहिए.