माहवारी स्वच्छता प्रबंधन पर यूनिसेफ के विशेषज्ञों ने भारत स्काउट्स एवं गाइड्स के सदस्यों को दिया प्रशिक्षण……

 

 

रायपुर

माहवारी प्रबंधन पर यूनिसेफ के विशेषज्ञों द्वारा भारत स्काउट्स एवं गाइड्स छत्तीसगढ़ के राज्य सचिव कैलाश सोनी के नेतृत्व में राज्य भर के स्काउट्स/ गाइड्स, रोवर/ रेंजर्स व स्काउटर्स/ गाइडर्स को ऑनलाइन प्रशिक्षण दिया गया। इस कार्यक्रम का उद्देश्य हमारे समाज के लोगों की माहवारी को लेकर वर्तमान में जो नजरिया है उस पर केंद्रित था। दुर्भाग्यवश हमारे समाज में माहवारी को शर्मनाक और घृणित माना जाता है। यह निषेध है। लोग इसके बारे में बात करने में सहज महसूस नहीं करते। ताज्जुब होता जब विकास और प्रगतिशीलता के मार्ग पर आगे बढ़ते समाज में लिंग-असमानता के तत्व के तौर माहवारी जैसे मुद्दों पर लोगों की जुबान चुप होती दिखाई पड़ती है।

गौरतलब है कि समाज में लोगों ने हर बुनियादी चीजों से दूरी बना ली है। इसका सटीक उदाहरण है आज भी हमारे समाज में पुरुषों का माहवारी के विषय में संकोच करना। जबकि ये बात आज के दौर की है जब टीवी में हर दूसरे विज्ञापन में हम सेनेटरी पैड और महिलाओं के मुश्किल दिनों की तमाम दवाईयों का विज्ञापन देखते हैं। सदियों से माहवारी को एक अभिशाप के रूप में देखा जाता रहा है। लेकिन वास्तव में, यह महिलाओं के स्वास्थ्य के लिए बड़ा आशीर्वाद है। जब हम मासिकधर्म पर स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से इसका वैज्ञानिक अध्ययन करते है तभी हम इसकी महत्ता को समझ सकते हैं।

*माहवारी पर समाज के अंधविश्वास व अवधारणाओं में बदलाव:- नेहा सिंह

यूनिसेफ की नेहा सिंह ने माहवारी पर जानकारी साझा करते हुए कहा महिलाओं को हर महीने होने वाली माहवारी को लेकर अभी भी समाज में कई तरह की अंधविश्वास और अवधारणाएं व्याप्त थी लेकिन अब समय के साथ बदलाव नजर आ रही है। आज भी अधिकांश समाज में माहवारी को अशुद्ध माना जाता है और माहवारी के समय महिलाओं पर रसोई घर में खाना बनाने, पूजा घर में प्रवेश निषेध और बिस्तर पर सोने पर प्रतिबंध लगा दिया जाता है।
कई जगह माहवारी के समय मंदिर में प्रवेश निषेध है। माना जाता है कि अगर महिलाएं माहवारी के वक्त मंदिर में जाएंगी तो मंदिर अशुद्ध हो जाएगा।
पीरियड्स को लेकर ऐसे कई मिथक अभी भी हैं, अभी भी इसे लेकर समाज में जागरूकता कि कमी है। बस्तर की एक प्रशिक्षणार्थी ने बताया आज भी अधिकांश महिलाओं की सेनेटरी उत्पादों तक पहुंच ही नहीं है, इसलिए वो सूती कपड़ा, राख वगैरह इस्तेमाल करती हैं, जिससे कि उन्हें कई बीमारियों का सामना करना पड़ता है। शहरों में अभी माहवारी को लेकर नजरिया नहीं बदला है, पैड्स या नैपकिन को लोग अभी भी छुपा कर खरीदते हैं। आज भी अधिकांश किशोरियां मासिक धर्म के कारण स्कूल नहीं जाती हैं। इसके लिए सामाज के लोगों की नजरिया में पूर्णतः बदलाव बहुत जरूरी है।

*माहवारी को लेकर हो रहे जागरूक:- चेतना देसाई

यूनिसेफ की चेतना देसाई ने प्रशिक्षण में कहा माहवारी के जागरूकता के लिए मुहीम चल रही है। हालांकि अब वक्त बदल रहा है। पीरियड से जुड़ी मान्यताओं के खिलाफ अब आवाज उठने लगी है। महिलाएं ही नहीं पुरुष भी पीरियड्स को लेकर फैले अंधविश्वास और मिथकों को तोड़ने के लिए आगे आ रहे हैं। कई फिल्मों में भी इस पर फोकस किया है जिससे पीरियड को लेकर लोगों की सोच बदली और लोगों ने इस पर खुल कर बात करना शुरू किया। सरकार ने भी मासिक धर्म से जुड़े मिथिकों को दूर करने के उद्देश्य से पांच साल की एक महत्वाकांक्षी योजना के तहत 28 मई, 2018 को मासिक धर्म जागरूकता कार्यक्रम ‘नीयन आंदोलन’ लांच किया। वहीं लड़कियां भी सोशल मीडिया के जरिए मासिक धर्म से संबंधित मिथकों को तोड़ रही हैं।

*व्यवहार में बदलाव बहुत जरूरी:- अभिषेक त्रिपाठी

यूनिसेफ के अभिषेक त्रिपाठी ने बताया कि किसी का व्यवहार एक दिन में नहीं बदल सकते उसके लिए हमें लगातार जुड़ना पड़ता है।अगर हम किसी भी मुद्दे पर जानकारी देना चाहते हैं तो हमारे पास 360 दिन होते हैं। इस समय हम माहवारी से संबंधित छोटे छोटे वीडियो बनाकर शेयर कर सकते हैं। सोशल मीडिया का उपयोग कर हम लोगों को जागरूक कर सकते हैं।
इस कार्यक्रम के बारे में मीडिया प्रभारी कृष्ण कुमार ध्रुव ने बताया कि यूनिसेफ की टीम ने बहुत अच्छी जानकारी दी और हमारे अनेक अनसुलझे सवालों के जवाब दिए। आगे ध्रुव ने कहा माहवारी पर समाज की सोच बदलने की बहुत जरूरत है क्योंकि माहवारी महिलाओं के लिए अभिशाप नहीं वरदान है यह प्रजनन का एक अंग है। आज भी मासिक चक्र पर महिलाएं अपने को असहज महसूस करती है कारण की इस पर लोगों की नजरिया सकारात्मक न होना। राज्य स्तरीय प्रशिक्षण कार्यक्रम के दौरान राज्यमुख्याल से सहायक राज्य आयुक्त रामदत्त पटेल, डॉ. करुणा मसीह, दिलीप पटेल, मितेन गनवीर, कवर्धा से अजय चंद्रवंशी, कोरिया से नागेश्वर साहू, सूरजपुर से गोवर्धन सिंह, कृष्ण कुमार ध्रुव, सरिता गोस्वामी, चंद्रपाल लकड़ा, कोरबा से उत्तरा मानिकपुरी साथ ही पूरे राज्य के समस्त जिले से स्काउटर/ गाइडर, स्काउट/ गाइड, रोवर/ रेंजर्स मिलाकर 300 से अधिक संख्या में इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में शामिल हुए थे।