सवालों के घेरे में पाली अस्पताल, व्यवस्था पर स्थानीय जनप्रतिनिधियों ने उठाए सवाल…

कोरबा/पाली :- जिले के पाली मुख्यालय में स्थित सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र को पूर्ण रूप से और सुनियोजित तरीके से सभी सुविधाओं से सुसज्जित होना बताकर यहां के अधिकारी व कर्मचारीगण अपनी पीठ थपथपा लेते हैं जबकि सच्चाई इनके जुमलों से कोसों दूर है। जिसे लेकर स्थानीय जनप्रतिनिधियों ने अनेक सवाल उठाए है।

पाली नगर में संचालित 30 बिस्तर में कार्यरत डाँक्टर मरीजो का इलाज करने के बदले रेफर करने में लगे हुए है। आकस्मित दुर्घटना के शिकार या गंभीर रोगी इस अस्पताल में लाए जाते है लेकिन त्वरित इलाज की ओर अस्पताल अमला ध्यान नही देता और पाली का यह अस्पताल अधिकतर रेफरिंग सेंटर बनकर रह गया है। जिसकी एक बानगी बीते 7 अप्रैल को देखने को मिला जब घटित सड़क हादसे में चिकित्सा अमले की संवेदनहीनता एवं गैर जिम्मेदाराना रवैये को लेकर अस्पताल में हल्के तनाव की स्थिति निर्मित हो गई। हुआ यूं कि कटघोरा नेशनल हाइवे 130 पर डूमरकछार ओवरब्रिज गाजरनाला के पास हुए सड़क हादसे में बाइक सवार पिता- पुत्र व भतीजा में पिता की मौके पर ही दर्दनाक मौत हो गई जबकि 14 वर्षीय पुत्र व 7 वर्ष के भतीजा को गंभीर चोटें आयी थी। घायलों को तत्काल पाली चिकित्सालय ले जाया गया जहां मौके पे ड्यूटी पर तैनात चिकित्सीय अमले ने घायलों की ओर त्वरित ध्यान देना मुनासिब नही समझा। जब अस्पताल की अव्यवस्था को लेकर तनाव की स्थिति निर्मित होने लगी तब काफी देर बाद उपचार की औपचारिकता निभाते हुए यहां के चिकित्सा अमला ने गंभीर रूप से घायल 14 वर्ष के बालक को बिलासपुर रेफर किया। रास्ते मे जिसकी सांसे थम गई, वहीं 7 वर्षीय घायल बालक का इलाज चल रहा है। उक्त घटना को लेकर घायल व मृतकों के परिजनों सहित स्थानीय जनप्रतिनिधियों ने अस्पताल व्यवस्था पर सवाल उठाते हुए चिकित्सा कार्य में लेट- लतीफी व मनमानी का आरोप लगाया है। इस चिकित्सालय में पदस्थ चिकित्सक अमले की अनदेखी की यह कोई पहली घटना नही है, बल्कि आम हो चली है। यहां तक कि शव ले जाने के लिए सरकारी वाहन भी मुहैया नही हो पाती। ऐसे में सरकार द्वारा चलाए जा रहे स्वास्थ विभाग और उनकी समस्त योजनाएं इस अस्पताल में खोखली साबित हो रही है। सूत्रों की मानें तो यहां जचकी के लिए लाए गए माताओं के परिजनों से बेहतर इलाज और सुविधा के नाम पर अच्छी खासी कमाई भी की जाती है और यदि परिजन असमर्थ रहा तो मरीज को रेफर कर दिया जाता है। अब सवाल यह रहता है कि मरता क्या न करता। निर्मित ऐसे हालात में परिजन उधार या घर- खेत गिरवी रख पैसे की व्यवस्था करता है तब सारे उपचार सहज रूप से हो जाते है। ऐसे में सरकार के सरकारी अस्पताल में निशुल्क व बेहतर उपचार की व्यवस्था पर सवाल खड़े होना लाजिमी है। भोली- भाली जनता गरीब, असहाय लोगों को सही इलाज संभव हो सके, इसके लिए दूर दराज से मरीज यहां इलाज कराने आते तो है। लेकिन यहां धरती का भगवान बनकर बैठे चिकित्सीय अमला उन्हें या तो रेफर कर देते है या धन लिप्सा की चाह रख उपचार करते है। इस व्यवस्था को लेकर क्या इसे मान लिया जाए कि चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी से उच्चस्थ अधिकारी तक इस खेल में संलिप्त है। यदि कभी कभार बड़े अधिकारियों का इस अस्पताल में औचक निरीक्षण हो तब दिखाने के लिए अस्पताल के अधिकारी और कर्मचारी सराफत और मानव सेवा का अच्छा खेल दिखाकर अपनी पीठ थपथपा लेते हैं
लेकिन अंदर मरीज और उनके परिजनों को किस प्रकार का दंश झेलना पड़ता है, पाली अस्पताल में यह जिम्मेदारों की आंखों से दिखाई नहीं पड़ता है।

✍🏻रिपोर्टरराहुल वर्मा /पाली