सरगुजा अंचल में जल संरक्षण का त्यौहार गंगा दशहरा…..

 

 

* गंगा दशहरा – जल प्रतिष्ठा का त्यौहार है ।

* गंगा दशहरा में कठपुतली विवाह विवाह संपन्न कराया जाता है।

 

प्रतापपुर / सूरजपुर

भारत में गंगा, गोदावरी, यमुना, सरस्वती, ब्रम्हपुत्र आदि महत्वपूर्ण नदियाँ हैं, जिन्हें प्राणदायनी माना जाता है। इनमें देव नदी गंगा भारतीयों के जीवन में धार्मिक आस्था से जुड़ी हुई है। और इसी से जुड़ा है गंगा दशहरा का पर्व और दशहरा मेला। सरगुजा अंचल में गंगा दशहरा पर्व बिल्कुल ही अनूठे ढंग से मनाया जाता है। इस अवसर पर यहाँ पांच दिनों तक मेला लगता है। यह पर्व यहाँ की लोक संस्कृति को समझने में सहायक है।

* गंगा की उत्पति और गंगा दशहरा – राजा भगीरथ ने अपने पूर्वजों की अस्थियों को विसर्जित करने के लिए कठोर तपरस्या कर गंगा को पृथ्वी पर अवतरित किया था। शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को गंगा, पृथ्वी लोक में अवतरित हुई थीं। इसलिए इस दिन गंगा दशहरा का पर्व, देवी गंगा को समर्पित त्योहार के रूप में मनाया जाता है। गंगा दशहरे के दिन से वर्षा का आगमन होने लगता है और दसों दिशाओं में हरियाली छाने लगती है। अतः इस दिन, वर्षा आगमन का स्वागत करते हुए खुशियां जाहिर की जाती हैं।

* गंगा दशहरा- जन्म नाल एवं कमल नाल का सम्बन्ध – छत्तीसगढ़ के सरगुजा अंचल में गंगा दशहरा का पर्व धूम-धाम से मनाया जाता है। सरगुजा वासियों की मान्यता है कि गंगा दशहरे के दिन पुरइन (कमल) के पत्ते से युक्त जलाशय में गंगा विराजती हैं। इसलिए इसी जलाशय को गंगा तुल्य मानकर इसकी पूजा-अर्चना की जाती है।

गंगा दशहरे के दिन किसी स्थानीय जलाशय में, साल भर आयोजित शुभ कार्यों से सम्बंधित सामान जैसे- विवाह का मौर, कक्कन, कलश, बच्चे के जन्म के समय का नाल व छटठी का बाल आदि को विसर्जित किया जाता है। इस दिन बैगा (पुरोहित) पूजा-अर्चना करवाता है। गंगा पूजन नारियल, सुपारी, फल-फूल और अगरबत्ती से किया जाता है।

गंगा दशहरे के दिन, दान का विशेष महत्व है इसलिए विसर्जित करने जाने के पूर्व गांव में सगे-संबधियों को निमंत्रित कर उन्हें तेल, कपड़ा, रोटी और यथाशक्ति रूपये दान देकर दशहरा मेला देखने जाने के लिए कहा जाता है। जलाशय में पुरइन (कमल) की जड़ के नीचे, बच्चे के जन्म के समय की नाल को गाड़ा जाता है। यह कार्य गांव का बैगा, पूजा करवाकर करता है। घर का जो व्यक्ति विसर्जित करने जाता है, वह उपवास रखता है। विसर्जित कर घर लौटने पर संगे-सबंधियों को भोज पर आमंत्रित किया जाता है। ग्रामीणों का कहना है कि ‘हम लोग अपने धार्मिक अनुष्ठानों के चीजों को गंगा में सेराना (विसर्जित करना) पुण्य मानते हैं किन्तु गंगा दूर है इसलिए किसी भी जलाशय को गंगा तुल्य मानकर, पूजा-अर्चना कर, शुभ कार्यों के सामान को विसर्जित कर पुण्य लाभ लेते हैं।’

* गंगा दशहरा और कठपुतली विवाह – कठपुतली का मंचन, प्राचीन मनोरंजक कार्यक्रमों में से एक है। सरगुजा अंचल में भी गंगा दशहरे के अवसर पर कठपुतली विवाह करने की प्रथा प्राचीन समय से है, जिसमें लकड़ी (काष्ठ) से गुडडे-गुड़िया बनाये जाते हैं और उनका विवाह संपन्न कराया जाता है।
सरगुजा अंचल में प्रति वर्ष जेठ मास शुक्ल पक्ष की दशमी को गंगा दशहरा के अवसर पर गांव की कुंवारी लड़कियां घर वालों के सहयोग से कठपुतली का विवाह करती हैं। लकड़ी के गुड्डा-गुड्डी बनाकर तीन दिनों तक विवाह के सभी रस्मों का पालन करते हुए कठपुतली विवाह का आयोजन किया जाता है। इस आयोजन में घर के बड़े-बुजुर्ग विवाह के सभी रस्मों (मण्डप गाड़ने से विदाई तक) को बताने में सहयोग करते हैं। गांव की कुंवारी लड़कियां गुड्डे-गुड्डी की मां और लड़के, पिता की भूमिका अदा करते हैं। इस आयोजन का उद्देश्य घर के बच्चों को विवाह संस्कार की जानकारी देना और मनोरंजन करना है। कठपुतली विवाह के उपरांत गंगा दशहरे के दिन इन कठपुतलियों को जलाशय में विसर्जित कर दिया जाता है।

* गंगा दशहरा मेला और दसराहा गीत – जिला पुरातत्व संघ सूरजपुर के सदस्य  व्याख्याता अजय कुमार चतुर्वेदी ने अताया कि सरगुजा अंचल में गंगा दशहरा – जल प्रतिष्ठा का मेला है।सरगुजा अंचल में गंगा दशहरा को‘‘ गंगा दसराहा‘‘ के नाम से जाना जाता है। सरगुजा अंचल में गंगा दशहरा के अवसर पर 5 दिनों तक मेले का आयोजन किया जाता है। दसराहा मेला मे पान की दुकानों का विशेष आकर्षण रहता है। क्योंकि इस दिन पान खाने का विशेष महत्व समझा जाता है। युवक-युवतिया पान खा कर छाता ओढ़कर ‘‘ दसराहा गीतों‘‘ का गायन करती हैं। दसराहा गीतों में सवाल-जवाब किया जाता है। दसराहा गीत को धंधा गीता और उधुवा गीता भी कहा जाता है। यह सरगुजा अंचल के गंगा दशहरा मेले का विशेष आकर्षण होता है। दसराहा गीतों में पान का उल्लेख

सुनने को मिलता है जो इस प्रकार हैं-

लड़का –‘‘ पान ला मुह ला करे लाल,
बेसी माया ला झिन करबे,
एक दिन हो जाही जीव कर काल।
चला चली दसराहा मेला देखे ला।। ‘‘

लड़की – ‘‘ जरइया ला तय जरे-मरे दे ,
तेर मोर प्रीत ला आगू बढ़े दे
चल चली दसराहा मेला देखे ला।।

गंगा दशहरा का त्यौहार आदिवासी लोग बड़े ही धूमधाम से मनाते हैं इस त्यौहार के माध्यम से किसी जलाशय को गंगा तुल्य मानकर पूजा अर्चना करते हैं और अपने बच्चों को कठपुतली विवाह के माध्यम से परंपरा की जानकारियां भी देते