कछार शिव मन्दिर में धूमधाम से मनाया जा रहा नवरात्र….

पत्थलगांव ✍️ जितेन्द्र गुप्ता

पत्थलगांव से 13 किलोमीटर दूर राष्ट्रीय राजमार्ग पे स्थित ग्राम कछार के शिव मंदिर में हर वर्ष की भांति ही धूमधाम से नवरात्र पर्व मनाया जा रहा है। जहाँ दूर दूर से भक्त पूजन करने पहुच रहे है। जहां भक्त अपने और परिवार के शुख शांति और समृद्धि के लिए ज्योति कलश स्थापित करते है। रोजाना रात्रि आरती के पश्चात माता की रसोई का प्रसाद भक्तों में वितरण किया जाता है जिसे पाने के लिए भक्त गाँव गाँव से मन्दिर पहुचते है। वही महिलाएं आरती जे बाद माता के भजन में थिरकते दिखते है। मन्दिर समिति के लोग सुबह से रात्रि आरती तक सभी कार्य को करते देखे जाते है।


नवरात्र पर्व पे कछार मन्दिर में पूजन करने बनारस से आये आचार्य चन्द्रेस्वर मिश्रा ने बताया अश्विन शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से नवमी तक की अवधि को शारदीय नवरात्र कहा जाता है। जहा जगत्स्वरुपा जगत्‌जननी माँ दुर्गा के लिए किए गये उपासना का महत्त्व हैं। विशेष महत्व है । सिद्धियो के लिए उत्सुक मनुष्य व तांत्रिक नवरात्र के रात्रियो मे देवी की उपासना करते हैं। नवरात्र मे दिन की अपेक्षा रात्रियों का सर्वाधिक महत्व है। नवरात्र वर्ष मे चार बार आते है। आषाढ़ और माघ मास के नवरात्र को गुप्त नवरात्र कहते है। कहा जाता है। चारो नवरात्रो मे प्रमुख दो नवरात्र होते हैं। एक वासंतिक नवरात्र जो चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से नवमी तक मनाई जाती है। और दूसरा शारदीय अश्विन शुक्लपक्ष प्रतिपदा से नवमी तक मनाया जाता है। नवरात्र संसार की आदि शक्ति महेश्वरी दुर्गा का पावन पर्व समूह है।

उत्तरप्रदेश, बिहार, बंगाल, आसाम, उडीसा, गुजरात, छत्तीसगढ़ मे एवं मध्य प्रदेश आदि प्रान्तों में शारदीय नवरात्र का विशेष महत्व है। इसमे बड़े समारोह के रूप मे दुर्गापूजन किया जाता है। बंगाल, बिहार, उत्तरप्रदेश. और छत्तीसगढ़ मे तो अश्विन नवरात्र का दूसरा नाम ही है। दुर्गापूजा इसमे बडी सज धज कर और निष्ठा के साथ दुर्गा जी की प्रतिमा बनाकर पूजा की जाती है। और दशमी के दिन
गंगा आदि नदी तलाबों में श्री दुर्गा की प्रतिमा प्रवाहित कर दिया जाता है । नवरात्र में दुर्गा सप्तशती के पाठ का विशेष महत्व है। इसमें अनेक स्थानों पर रामलीला रात्रि भजन कार्यक्रम आदि आयोजन होता है। और उसकी समाप्ति रावण बध व श्री राम राज्याभिषेक के साथ विजयादश्मी के दिन की जाती है। शास्त्रो में चर्चा है। कि जानकी हरण के बाद भगवान श्रीराम जी अंत्यंत उदासीन थे उनको देवर्षि नारद ने अपने आचार्यत्व में शारदीय नवरात्र का व्रत और दुर्गा की पूजा करवाई थी और राम ने नव दिन तक उपवास पूर्वक नवरात्र व्रत किया था जिस पूजन के बाद मध्य रात्रि को माँ भगवती ने दर्शन देकर
रावण को मारने का आदेश दिया था।

शारदीय नवरात्र सभी नवरात्रों में श्रेष्ठ है। इस नवरात्र में शक्ति आराधाना समस्त भारत में होती है।पूरे नवरात्र में बर्ती को फलाहारी अथवा ऐकाहारी होना चाहिए किंतु यदि नवरात्र पर्व व्रत रखने की सामर्थ्य न हो तो सप्त रात , पंचरात्र , युग्मरात अथवा एकरात्र की शास्त्रीय विधान है। प्रतिपदा से सप्तमी रात तक सप्तरात्र, पंचमी, शष्टि को बिना मांगे कुछ ग्रहण किये उसे पंचरात्र कहा जाता है। आरम्भ से और अंत के दो दिनो में एक बार आहार लेने वाले व्रत को युग्मरात कहा जाता है।

तथा आरम्भ से समाप्ति मेसे एक दिन व्रत रहने पर एकरात्र कहा जाता है। नवरात्र में अष्ठमी एवं नवमी तिथी का महातिथी कही गई है। इन दोनो तिथियों में दुर्गा पूजा का विशेष महत्व है।