रायगढ़ के वीर सपूत शहीद कर्नल विप्लव त्रिपाठी सियाचिन ग्लेशियर से मणिपुर तक एक जाबांज सिपाही…आज है कर्नल विप्लव त्रिपाठी का जन्म दिन….

रायगढ ✍️जितेन्द्र गुप्ता

20 मई शहीद कर्नल विप्लव त्रिपाठी के जन्मदिन पर
विशेष आलेख शहीद कर्नल विप्लव त्रिपाठी
सियाचिन ग्लेशियर से मणिपुर तक एक जाबांज सिपाही

सैनिक स्कूल रीवा, एनडीए खडग़वासला, आईएमए देहरादून और स्टॉफ कॉलेज वेलिंगटन से की पढ़ाई, २० साल के सैन्य जीवन में एलओसी से लेकर एलएसी, चीन-म्यांमार-बांग्लादेश की सीमा पर रही तैनाती, यूएन पीस फोर्स के लिये कांगो में भी एक साल रहे, स्ट्राइक कोर एक मथुरा में भी पदस्थ थे

सियाचिन ग्लेशियर से मणिपुर तक देश के दुश्मनों से लड़ते हुए आखिर में मणिपुर में भी अलगाववादियों से लड़ते हुए अपने 4 जवानों के अलावे अपनी पत्नी अनुजा और पुत्र अबीर के साथ प्राणोत्सर्ग करने वाले शहीद कर्नल विप्लव त्रिपाठी का समग्र सैन्य जीवन अदम्य साहस, अद्भुत पराक्रम और वीरोचित शौर्य का जीवंत दस्तावेज है।

सैनिक स्कूल रीवा से हाईस्कूल की शिक्षा पूरी करने के बाद 3 साल तक एनडीए खडग़वासला और फिर एक साल तक आईएमए देहरादून में कड़ा प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद 2003 में पासआउट होने वाले कर्नल विप्लव त्रिपाठी ने आईएमए में अंतिम पग रखने के बाद भारतीय सैन्य सेवा के लिए थल सेना में कमिशन हासिल किया था और तभी उन्हें दुनिया के सबसे ऊंचे और खतरनाक युद्धक्षेत्र सियाचिन ग्लेशियर में तैनात किया गया था। अपनी कमसिन उम्र में खून जमा देने वाले माइनस 40 के तापमान में बर्फीले युद्ध क्षेत्र में दुश्मनों और मौसम जैसे दो पाटों के बीच जहां एक दिन क्या कुछ घंटे भी नहीं रहा जा सकता वहां कर्नल विप्लव त्रिपाठी ने अपनी सैन्य सेवाओं के शुरुआती 6 महीने व्यतीत किये जहां हम और आप जैसे लोग 6 मिनट भी नहीं रह सकते।

सियाचिन में कर्नल विप्लव त्रिपाठी के तैनाती के दरम्यान हमारा उनसे किसी तरह से संपर्क नहीं था उन्हीं दिनों मीडिया से हमें यह खबर मिली कि ग्लेशियर में आइस स्कूटी से जा रहे आर्मी के एक डॉक्टर बर्फ की एक खोह में स्कूटी समेत गुम हो गए। इस खबर ने हमें बैचेने कर दिया। हम विप्लव से संपर्क करने की भरसक कोशिश करते रहे पर उससे हमारा संपर्क नहीं हो पाया। बाद में विप्लव ने ही हमें बताया कि वह सकुशल है और आर्मी डॉक्टर की बॉडी नहीं मिली है। सियाचिन ग्लेशियर के बाद विप्लव की पोस्टिंग पठानकोट में हुई वहां उसे कैप्टन के पद पर पदोन्नति दी गई। विप्लव के पठानकोट में पदस्थ होने के दौरान हम अपने छोटे बेटे अनय के साथ पठानकोट गए हुए थे तभी हमने वहां वैष्णव देवी के दर्शन भी किए थे।

पठानकोट के बाद विप्लव को कश्मीर वैली के एक और दुर्गम और दुरूह युद्धक्षेत्र कुपवाड़ा में पदस्थ किया गया। अपने कर्तव्यों के निर्वहन को लेकर विप्लव की संजीदगी को देखते हुए कुपवड़ा के जीओसी लेफ्टिनेंट जनरल बाजवा ने विप्लव को अपना एडीसी बनाकर सीमाक्षेत्र की अहम जिम्मेदारी दी थी। कुपवाड़ा से पाकिस्तानी सरहद की दूरी बमुश्किल 10-12 किलोमीटर थी। कुपवाड़ा में विप्लव की तैनाती के दौरान ही भारतीय सैनिकों ने मुठभेड़ के दौरान पाकिस्तान पोषित करीब आधा दर्जन आतंकवादियों को मार गिराया था। हम कुपवाड़ा भी गए थे और वहां आर्मी कैंपस के सामने सुबह आंख खुलते ही हजारों-हजार की तादाद में ताजा खिले गुलाब को देखने के बाद हमें लगा कि कश्मीर को यूं ही धरती का स्वर्ग नहीं कहते। वहीं से हमने श्रीनगर में डल लेक, पहलगाम और गुलमर्ग की सैर की थी। उसी दरम्यान हम पहली बार हेलिकाप्टर से अमरनाथ गए थे तभी विप्लव ने हमें बताया था कि कैसे भारतीय जवानों ने गंदे पानी के गड्ढे में डूबकर दो आतंकवादियों को ढेर किया था।


सियाचिन से राजौरी तक लगातार खतरों से जूझते रहने के बाद पहली बार विप्लव की पोस्टिंग आईएमए देहरादून में इंस्ट्रक्टर के पद पर जरूर की गई थी लेकिन कार्यकाल पूरा करने से पहले ही उन्हें यूएन पीसकीपिंग फोर्स के लिए एक साल के लिए कांगों भेज दिया गया। इस बीच विप्लव का विवाह भी हो चुका था लेकिन उन्हें पत्नी को छोड़कर कांगों जाना पड़ा। कांगों से वापस लौटने के बाद दूसरी बार एक शांत क्षेत्र लखनऊ में विप्लव की पोस्टिंग हुई जहां रहते हुए पत्नी अनुजा ने बेटे अबीर को जन्म दिया और लखनऊ में बमुश्किल कार्यकाल पूरा करने से पहले ही विप्लव को एक और ऊंचे युद्धक्षेत्र उत्तर सिक्कम में तैनात किया गया था जहां हड्डियां चटका देने वाली ठंड ने विप्लव को चीन जैसे खतरनाक दुश्मन से जुड़े हिंदुस्तानी सरहद की पहरेदारी करनी पड़ी। सिक्किम में कैंप में सो रहे कर्नल विप्लव का टैंट अचानक आग की लपटों में घिर गया पर विप्लव ने वहां भी सामने खड़ी मौत को पूरी दिलेरी से बाय-बाय कर दिया। हालांकि उनका पूरा टेंट जलकर खाक हो गया। सिक्किम में रहते हुए एक कठिन प्रतियोगी परीक्षा में सफलता प्राप्त करने के बाद विप्लव और उनके छोटे भाई अनय का चयन आर्मी के प्रतिष्ठित संस्था स्टाफ कॉलेज वेलिंगटन के लिए हो गया जहां दोनों भाईयों ने एक वर्ष तक अध्ययन करने के बाद सफलता हासिल की। वहीं विप्लव को कर्नल के पद पर पदोन्नति भी दी गई।
वेलिंगटन में अध्ययन पूरी करने के बाद विप्लव को ऑपरेशन फस्ट स्ट्राइक मथुरा में पदस्थ किया गया। वहां करीब एक डेढ़ साल रहने के बाद विप्लव को मिजोरम की राजधानी आइजोल में 46 असम राइफल्स के सीओ के पद पर पदस्थ किया गया। जहां अपनी दो वर्ष के कार्यकाल के दौरान ही म्यांमार और बंग्लादेश के रास्ते हथियारों और मादक द्रव्यों की तस्करी करने वालों के खिलाफ लगातार कार्रवाई करते हुए कर्नल विप्लव त्रिपाठी ने तस्करों के पूरे नेटवर्क को तहस-नहस कर दिया।
मिजोरम में कर्नल विप्लव त्रिपाठी की कामयाबी को देखते हुए उन्हें नार्थ ईस्ट के एक और खतरनाक क्षेत्र मणिपुर में पदस्थ किया गया और साथ ही 46 असम राइफल्स को मणिपुर भेज दिया गया। मणिपुर आने के बाद म्यांमार से जुड़े सरहदी इलाकों का बारिकी से मुआयना करने के बाद यहां भी विप्लव ने ड्रग और हथियारों के तस्करों के खिलाफ दनादन कार्रवाई करते हुए ट्रकों में लदा कराड़ों रूपयों का मादक पदार्थ जब्त कर लिया। ड्रग स्मगरों के खिलाफ उनका अभियान जारी ही थी कि बीते 13 नवंबर को मणिपुर में एंबुश लगाकर एक कथित आतंकवादी हमले से जूझते हुए अपनी पत्नी अनुजा और 6 वर्ष के पुत्र अबीर के अलावे अपने 4 जवानों के साथ उन्होंने अपनी शहादत दर्ज की। उनके लहू से लिखी गई शहादत की यह इबारत कभी मिटाई नहीं जा सकती।

अपने समग्र सैन्य जीवन के दौरान सिर्फ लखनऊ और आईएमए देहरादून में अपने पदस्थापना के अलावे कर्नल विप्लव त्रिपाठी ने अनपी अधिकतर सेवाएं दुर्गम युद्ध क्षेत्रों में दी है। उनकी गिनती भारतीय सेना के उन विरले अधिकारियों में की जाती है जिसने बमुश्किल 20 वर्ष की सेवा अविध में राजौरी में पदस्थ होते हुए पाकिस्तान से जुड़े एलओसी, उत्तर सिक्किम में चीन से जुड़े एलएसी, दुनिया के सबसे ऊंचे युद्धक्षेत्र सियाचिन के अलावे कश्मीर और उत्तर पूर्व के आतंकवाद प्रभावित क्षेत्रों को अपनी जांबाज सेवाएं दी हैं। सुभाष त्रिपाठी

मेरा नाम है अबीर
मणिपुर की मिट्टी में लहू से लिखी गई इबारत
अबीर तुम तो आर्मी ऑफिसर बनना चाहते थे पर आर्मी ऑफिसर बनने से बहुत पहले तुम सचमुच आर्मी ऑफिसर बन गए। मणिपुर में हुए आतंकी हमले में धुंआधार गोलियों की बौछार को झेलते तुमने जो शहादत दर्ज की है उसकी कोई दूसरी मिसाल पूरी दुनिया में कहीं नहीं है। अबीर तुम्हारा नाम विश्व इतिहास के सुनहरे पन्नों में दर्ज हो चुका है। 6 साल की उम्र में शहादत दर्ज करने वाले तुम दुनिया के पहले बच्चे हो जिसने अचानक किये गए आतंकी हमले से जूझते हुए अपने माता-पिता के साथ प्राणोत्सर्ग किया। न तो तुम्हें यह देश भूल पाएगा और न ही दुनिया। तुमने जो अमरत्व प्राप्त किया है वह अलब्ध और अकल्पनीय है। तुम आर्मी ऑफिसर बनोगे यह सपना तो हमनें भी अपने आंखों में संजोया था यह जानते हुए भी कि जीते-जीते हम अपने इस सपने को साकार होते नहीं देख पाएंगे, शायद यही वजह होगी कि तुमने हमारे सपने को समय से बहुत पहले साकार कर दिया और हमें बता दिया कि मेरा नाम है अबीर।
5 फरवरी 2015 को उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के आर्मी कमांड हॉस्पिटल में अपनी मां की कोख से तुम्हारा जन्म हुआ था तब से 6 नवंबर 2021 तक के सारे दृश्य और कथ्य यह लिखते हुए मेरी आंखों के सामने किसी फिल्म की उल्टी चलती रील की तरह गुजर रहे हैं। लखनऊ के स्टाफ क्वार्टर में जब तुम अपने घुटनों से तड़ तड़ तड़ पूरे घर की परिक्रमा करते थे तब हम सब एक अलौकिक आनंद के समुद्र में डूब से जाते थे और फिर वैलिंगटन में मुझे घोड़ा बनाकर चल-चल मेरे घोड़े वाला खेल मेरी पीठ पर बैठकर खेला करते थे और उसके बाद आइजोल में तो तुमने अपने पापा से पूरी कमांडो ट्रेनिंग हासिल कर ली थी। आखिर में मणिपुर में आर्मी-आर्मी वाला खेल खेलते हुए तुम मुझे भगवान की पूजा भी नहीं करने देते थे तभी मेरे दिलो-दिमाग में यह ख्याल आता था कि तुम में कुछ असाधारण हैं तुम साधारण बच्चे नहीं हो।

6 नवंबर को जब हम रायगढ़ लौटने के लिए चूड़ाचांदपुर से इम्फाल जा रहे थे तब तुम्हारे और तुम्हारी दादी के बीच चूड़ाचांदपुर और रायगढ़ की तुलना करते हुए खूब झगड़ा होता रहा। तुमने चूड़ाचांदपुर को रायगढ़ से अच्छा बताने में अपनी ओर से कोई कसर बाकी नहीं रहने दी। शायद अपने मन के भीतर कहीं तुम यही चाहते थे कि हम मणिपुर में ही तुम्हारे साथ रूक जाएं लेकिन मेरी वजह से ऐसा नहीं हो सका था। मैं अब अपने जीवन के आखिरी सांस तक एक अपराधबोध से ग्रस्त रहूंगा।
7 नवंबर को जब हम वापस रायगढ़ पहुंचे उसी दिन तुमने वीडियो कॉल करके मुझसे अपने पापा की शिकायत की कि उन्होंने तुम्हारे खाने के प्लेट से दो आलू चुरा लिए और मुझसे उन्हें डांटने के लिए कहा। तब मैंने मजाक में तुम्हारे पापा को डांटा लेकिन तुमने यह भी कहा कि दादू आप पापा को पनिश्मेंट भी दीजिए कि अब वे पोस्ट पर न जाएं और मैंने तुम्हारे पापा को पोस्ट में जाने के लिए मना भी किया।
13 नवंबर को जब मुझे मेरे अपनों ने ही यह सूचना दी कि एक आतंकवादी हमले में तुम अपने पापा- मम्मा और 4 जवानों के साथ अपनी ईहलीला समाप्त कर चुके तो एक बारगी मैं विक्षिप्त सा हो गया और तब तक उस सूचना पर यकीन नहीं कर सका जब तक मैं अपना होशोहवाश खोया रहा।
अबीर आज मैं उस दृश्य की कल्पना मात्र से कांप जाता हूं और सोचता हूं 6 साल की मासूम सी उम्र में आतंकवादियों की बंदूकों से धुआंधार गोलियों की बौछार का सामना तुमने कैसे किया होगा। जरूर तुम्हारी चीख अपने मम्मा-पापा को लेकर निकली होगी। तुमने कहा होगा मेरे मम्मा-पापा को मत मारो पर तुम्हारी मासूम आवाज गोलियों की बौछार में गुम हो गई होगी।

अबीर तुम तो रंग हो तुम कभी गुम हो ही नहीं सकते। रंग रहित जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। मणिपुर में अपने लहू से तुमने जो इबारत वहां की मिट्टी में लिखी है उसे कभी नहीं मिटाया जा सकता। हो सकता है सरकारें तुम्हें शहीद या वीर बालक का दर्जा न दें लेकिन तुम्हारा नाम हजारों-लाखों की आत्मा में अंकित हो चुका है। जिसे कभी कोई नहीं मिटा सकता क्योंकि अबीर का अर्थ ही जीवन है।
-सुभाष त्रिपाठी
(शहीद कर्नल विप्लव त्रिपाठी के पिता और शहीद अबीर के दादा)
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देखो मेरे आँसू यहीं करते हैं पुकार आओ चले आओ, मेरे भाई मेरे यार
बुलु क्या यह सच है कि पहली मौत के बाद और कोई दूसरा नहीं है?
मैं जैसा महसूस कर रही हूँ उसे समझाने के लिए मेरे पास कोई लॉजिक नहीं है। दिमाग यह मानता है तुम नहीं हो, पर तुम्हारी यादों की छांव में मैं अपना बचा जीवन जी लूंगी। लेकिन अभी भी मेरे अंदर जल्द ही तुमसे मिलने की उम्मीद बची हुई है।
तुम्हारा शोक मनाने और तुम्हारे लिए रोना मेरे से नहीं हो पाएगा। मेरा मन होता कि मैं तुम्हारा नाम जोर-जोर से पुकारूं, पर जब दिल फटता है तो तुम्हारे न होने का एहसास करा देता है। लेकिन मैं ऐसा नहीं करती, कैसे मान सकती हूँ? वास्तव मैं ऐसा करने से डरती हूँ, कहीं ऐसा न हो कि मुझे हकीकत का सामना करना पड़े।
मेरी मदद करो बुलु। मैं हर दिन यह महसूस करती हूँ कि तुम, भाभी और प्यारा अबूजान अपनी जिंदगी जीने में मस्त हो और मुझे अपने पास बुला रहे हो। मैं देख रही हूँ कि तुम तीनों अपने रूटीन की जि़ंदगी में व्यस्त हो, सोकर उठ रहे हो, नाश्ते के बाद नहाने जा रहे हो, अबू के नखरे, फौज के कामों में रमी भाभी और तुम अपनी वर्दी में खूबसूरत लग रहे हो, सब मस्त से जी रहे हो।
हाल ही में फ़ोन पर हुई हमारी बात फिर से मेरे कानों में गूंज रही है, तुम्हारे सांड और मोटू के जोक्स पर भाभी की हंसी अभी भी महसूस हो रही है, अबू की बनी बुआ और टिया दीदी की आवाज़ अभी भी महसूस कर रही हूँ, तुम्हारा प्यार से ‘हां न बनी, कैसे है बेटा कहना, बुलु यह विश्वास करना कि तुम यहाँ नहीं हो, झकझोर देता है। तुम्हें यहाँ रहना ही होगा। भले ही मैं तुम्हें नहीं देख रही हूँ। पर मुझे पक्का विश्वास है कि तुम किसी खूबसूरत फौज़ी घर में शानदार जीवन जी रहे हो जिसके तुम हकदार हो। इसके अलावा और कुछ पर मेरा भरोसा नहीं है। मुझे लगता है कि मैं उतनी मजबूत नहीं हूँ। मैं उस जहां में नहीं जी सकती जहाँ तुम न हो। और मैं रोऊंगी नहीं, वास्तव मैं रो ही नहीं सकती, मैं शोक नहीं मना सकती, मैं स्वीकार नहीं कर सकती। हां, तो तुमने बिलकुल ठीक समझा तुन्हें मुझसे मिलने की जरूरत है, मुझे यह बताते की जरूरत है। कि तुम ठीक हो, तुम्हें मेरी इस जीवन की राह दिखाने में हमेशा मदद करनी होगी। जन्मदिन और सालगिरह पर तुम्हारे वो लंबी, उलझी लाइनों से सजे संदेशों को मुझे देखेने की जरूरत होगी। भाभी के लिए एसएसजी को तुम्हारे साथ पूरा करना होगा कि हमने कितना कदम चला और अबू फिर कहेगा ‘बनी बुआ, पापा चीटिंग करते हैं। तुम्हारी इस जहां से परे फौजी कहानियों को तुम्हारे मुँह से सुनने की मुझे जरूरत है। सबसे बड़ी बात यह कि मुझे तुम्हारी जरूरत है, जब भी मुझे बड़े भाई का सहारा खोजना होता है तो तुम ही होते ही क्योंकि तुम्हारे जैसा कोई नहीं है। अगर तुम मेरे पास न होगे तो मेरा क्या होगा, कैसे जीऊँगी? तुम्हें याद है न कि हम हमेशा चर्चा करते थे कि तुम मेरे जुड़वा भाई हो। आधे अंगों के साथ मैं जी नहीं पाऊंगी। या तो आओ और एहसास दिलाओ कि मैं समझदार हूँ या फिर कैसे भी करके यह निश्चिंत कर दो कि तुम्हें मैं मेरे खय़ालों में पाऊं।
बुलु फ़ोन उठा ले एक बार बात कर ले भाई प्लीज़
देखो मेरे आँसू यहीं करते हैं पुकार
आओ चले आओ, मेरे भाई मेरे यार पोछने आँसू मेरे क्या नहीं आओगे तुम
रूना त्रिपाठी (बनी)